नवरात्र में आदिशक्ति माता विंध्यवासिनी के नौ रूपों की आराधना की जाती है । पहले दिन हिमालय की पुत्री पार्वती अर्थात शैलपुत्री के रूप में माँ का पूजन करने का विधान है, वहीँ दूसरे दिन ब्रह्मचारिणी के रूप में पूजन किया जाता है ।
“या देवी सर्व भूतेषु ब्रम्ह रूपेण संस्थिता नम: तस्यै, नम: तस्यै,
नम: तस्यै नमो नम:” ।प्रत्येक प्राणी को सदमार्ग पर प्रेरित वाली माँ का यह स्वरूप बड़ा दिव्य है । माता सफेद वस्त्र धारण कर एक हाँथ में कमंडल और दूसरे हाथ में माला लिए हुए सभी के लिए आरध्यनीय है । विन्ध्य और माँ गंगा के तट पर विराजमान माँ विंध्यवासिनी ब्रह्मचारिणी के रूप सभी भक्तों का कष्ट दूर करती है ।